नगरदेवला : इतिहास की शान, आज की बदहाली

नगरदेवला / फिरोज पिंजारी :- जलगाँव जिले का नगरदेवला गाँव को 500 साल से ज्यादा पुराना इतिहास है, लेकिन विकास की दौड में आज नगरदेवला गांव सबसे पीछे दिख रहा है। स्वच्छ भारत योजना ठप्प, सडकें और नदी गंदगी में डूबीं, और राजनेताओं के वादे कागजों में कैद...



नगरदेवला गाँव - जलगाँव जिले के पाचोरा तहसील का यह ऐतिहासिक गाँव कभी पवार घराने की गढीवजा कोट और मजबूत बंधारों के लिए जाना जाता था। लेकिन आज हालात ऐसे है कि न इतिहास की इज्ज़त बची है और न ही विकास की कोई तस्वीर दिखाई देती है।


स्वच्छ भारत योजना का नाम यहाँ सिर्फ पोस्टरों और भाषणों में दिखता है। हकीकत यह है कि गाँव में प्रवेश करने वाली सडकों के किनारे रोज लोग खुले में शौच करते है। स्वच्छ भारत योजना यहाँ पूरी तरह ठप्प है। गाँव में प्रवेश करने वाली सडकों के किनारे रोज खुले में शौच होता है। सोमवार का हाट बाजार, जहाँ लोग खरीददारी करने आते है, उसी जगह पर लोग रोज सुबह शाम शौच कर रहे है। यानी गंदगी अब यहाँ की पहचान बन चुकी है।



गाँव की जीवनरेखा कही जाने वाली अग्नावंती नदी भी अब घाण और गंदगी में डूबी हुई है। इस नदी से गांव को पिने का पानी, खेती के लिए पानी मिलता है पर ना जनता, ना ग्राम पंचायत...और ना ही सरकार इस नदी का सन्मान करती है...ना इस नदी को साफ सुथरा रखने का प्रयास किया जा रहा है। पवार घराने के समय बने बंधारे और फरशी तक नदी का पानी अस्वच्छ है। चारों तरफ जंगली झाड़ियाँ और काटेरी पेड उग आए है। यह तस्वीर साफ बताती है कि नदी और पर्यावरण की ओर किसी का ध्यान नहीं है।


500 साल से ज्यादा पुरानी ऐतिहासिक पहचान होने के बावजूद गाँव तरक्की की दौड से बाहर है। न तो ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया गया, न ही विकास योजनाओं ने गाँव का चेहरा बदला।


सरकारें आती है, नेता आते है, चुनाव होते है… वादे किए जाते है… लेकिन नगरदेवला की हालत आज भी वैसी ही है। सड़कें टूटी है, नदी गंदी है, और योजनाएँ सिर्फ कागजों तक सीमित है।



गाँव चारों तरफ से तरक्की पाए शहरों से घिरा है —


जलगाँव – 70 किमी


चालीसगांव – 35 किमी


पाचोरा – 28 किमी


भडगांव – 20 किमी


कजगांव – 15 किमी


नागद – 12 किमी


सोयगांव – 40 किमी


सिल्लोड – 90 किमी


छत्रपती संभाजीनगर – 110 किमी


मालेगांव – 100 किमी


पारोला – 30 किमी


नाशिक – 200 किमी



इन सब जगहों पर सरकारी योजनाएँ पहुँचीं, सडकें बनीं, सुविधाएँ मिलीं। लेकिन नगरदेवला अब भी उपेक्षित है।



लोग 200–500 किमी दूर से ट्रेन, बस, ट्रव्हल्स पकडकर नगरदेवळा स्टेशन तक आ जाते है। लेकिन स्टेशन से गाँव की दूरी सिर्फ़ 5 किमी होने के बावजूद वहाँ पहुँचना बेहद मुश्किल काम है — क्योंकि सड़कें टूटी है और यातायात की कोई सुविधा नहीं है।


इतिहास में नगरदेवला गाँव का बडा नाम था, लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि न सडक है, न पानी है, न रोजगार। योजनाएँ कागज पर बनती है, चुनाव आते है, नेता वादे करके चले जाते है, लेकिन गाँव की बदहाली जस की तस है।


500 साल से ज्यादा पुराने इतिहास और गौरवशाली अतीत के बावजूद नगरदेवला आज गंदगी, पिछड़ेपन और उपेक्षा का प्रतीक बन गया है।


नगरदेवला की ये तस्वीर प्रशासन और सरकार दोनों पर सवाल खड़ा करती है। स्वच्छ भारत से लेकर विकास योजनाओं तक हर जगह गाँव क्यों नजरअंदाज हुआ ?

इतिहास और संस्कृति में इतनी अहमियत रखने वाला गाँव आज तक तरक्की से महरूम क्यों है ?


नगरदेवला… इतिहास की शान, लेकिन आज की गंदगी और उपेक्षा का प्रतीक। सवाल यह है कि स्वच्छ भारत योजना और तमाम विकास योजनाओं के बावजूद यह गाँव क्यों अंधेरे में है ? क्या प्रशासन और सरकार इस बदहाली को देखेंगे? या फिर नगरदेवला का नाम सिर्फ इतिहास की किताबों में रह जाएगा, और हकीकत में यह गाँव ‘शापित गाँव’ की तरह जीने को मजबूर रहेगा ?


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