आज की महाभारत

रात के दो बजे थे।

कमरे में बस लैपटॉप की नीली रोशनी थी और गीता के पन्नों की धीमी सरसराहट।

प्रोफेसर आयुष मेहता ने पन्ना पलटा और बुदबुदाए —क्या महाभारत सच में खत्म हुआ था या वह हर युग में नए रूप में लौटता है?

तभी हवा स्थिर हो गई। घडी की सुइयाँ थम गईं। और कमरे में एक सुनहरी आभा फैल गई। उसमें उभर आया वक़्त का पहिया, चमकता, घूमता, और बोलता हुआ-आयुष, मैं वक़्त हूँ। तुम जिस युग को आधुनिक कहते हो, वहाँ भी महाभारत जारी है। बस रणभूमि बदल गई है, अस्त्र अब शब्द है, और युद्ध अब मन का है। चलो तुमको उस आधुनिक हस्तिनापुर में लेकर चलता हूँ।


* आधुनिक हस्तिनापुर :- आयुष ने खुद को एक विशाल सभा में खड़ा पाया, जहाँ एक सभा चल रही थी वह एक स्क्रीन थी और मंच पर खड़ा था दुर्योधन, कुर्ता पजामा पहने पर भीतर वही सत्ता की प्यास से जलता चेहरा। उसने ऊँची आवाज में कहा, मैं ही धर्म, देश का रक्षक हूँ।पांडव अधर्मी है देश के दुश्मन है तुम हमारा साथ दो हम तुमको उनसे बचाएंगे।

बगल में शकुनी था -

अब पासों की जगह उसने कीबोर्ड पकड रखा था।

हर क्लिक के साथ स्क्रीन पर झूठ फैला रहा था उसके साथी X पर झूठ फैला रहे थे। हर ट्वीट के साथ भीड़ बँटती जा रही थी। शकुनि और कौरव मुस्करा रहे थे। और सोच कर खुश हो रहे थे कि सत्य की जरूरत नहीं, कहानी वही जीतती है जो ज़्यादा शेयर होती है। ज्यादा बार बोली जाती है। उस सभा में भीड़ तालियाँ बजा रही थी, पर आँखों में प्रश्न तैरने लगे थे क्या सचमुच धर्म एक व्यक्ति से बँध सकता है ?

सभा के कोने में बैठे भीष्म अब भी मौन थे, क्योंकि वे पद, प्रतिष्ठा और वफादारी के जाल में फँसे थे।

द्रोणाचार्य सोचते रहे अगर मैं बोलूँ, तो अपनी गद्दी खो दूँगा। और इस तरह मौन, अधर्म का सबसे मजबूत साथी बन गया।

कृष्ण भगवान अब किसी मंदिर में नहीं, हर जागे हुए मन में थे। कभी किसी बच्चे के सवाल में, कभी किसी कवि की कलम में, कभी किसी माँ की नजर में।

एक बालक ने पूछा माँ, अगर वो सच कहता है तो हमें डर क्यों लगता है। हमको जाति में क्यों बांटा जाता है। 

माँ के भीतर भी यही सवाल था फिर उसने बोला सत्य डर नहीं देता, झूठ ही भय से अपना अस्तित्व बचाता है।

धीरे धीरे लोग उठने लगे। भीड़ अब बस सुन नहीं रही थी, सोचने लगी थी। क्या सचमुच देश का असली गद्दार कौन है ? या हमें किसी ने बाँट दिया है ?


दुर्योधन की आवाज अब काँपने लगी। वह चिल्लाया जो मुझसे सवाल करेगा, जो मेरे ओर मेरी कुर्सी के बीच आएगा वो मेरे खिलाफ है, देशद्रोही है। ये कुर्सी मेरे पिता की है। इसको मुझसे कोई नही ले सकता। पर इस बार भीड़ नहीं झुकी। लोगों ने एक स्वर में कहा हम धर्म चाहते है, पर सत्य के साथ। देश संविधान से चलेगा न कि वंशवाद से...अब दुर्योधन की असलियत उजागर हो गई। उसके अपने ही अनुयायी कहने लगे, हम डर और नफरत फैलाते थे। हमें शक्ति का लालच दिया गया था। सभागार में सन्नाटा छा गया। लोग जो कभी उसकी जयकार करते थे, अब उसके झूठ से थरथराने लगे।

दुर्योधन चिल्लाया यह सब षड्यंत्र है। मैं ही सत्य हूँ। मैं ही देश का रक्षक हूँ। पर इस बार उसकी आवाज लौट आई - खोखली, थकी, पराजित। दूसरी तरफ अर्जुन भीड़ के बीच खड़ा हुआ। वही भ्रम में क्या युद्ध अब धनुष से नहीं नही लड़ जाएगा। हर व्यक्ति सच को कैसे समझेगा जानेगा की धर्म किस तरफ ओर अधर्म किस तरफ। व्यक्ति वो डर के साथ है, या सत्य के साथ। वक़्त का पहिया मुस्कराया और आकाश में गूँजा कृष्ण का स्वर-जब लोग स्वयं सोचना शुरू कर देते है, तब अधर्म का साम्राज्य स्वयं ढह जाता है। और वो धर्म की तरफ आ जाएगा। पार्थ ये युद्ध तुम्हारा अकेले का नही हर व्यक्ति का है। आज कोई भी इस युद्ध से खुद को अलग नही कर सकता। तुमको तो बस उनको राह दिखानी है। उनके विवेक को जगाना है। तुम्हारा हथियार गांडीव नही तुम्हारे शब्द और सोच होगी स्थल सोशल मीडिया, सभाएं और सम्मेलन होंगे। जहां तुमको लोगो को सच से अवगत कराना है।

धीरे-धीरे सब शांत हुआ। नीले आकाश में नई किरणें उभरीं। वक़्त का पहिया बोला हर युग में दुर्योधन जन्म लेता है, हर युग में शकुनी जाल बुनता है, पर हर बार-कृष्ण भी लौटते है, मनुष्य के विवेक के रूप में।

आयुष ने गहरी साँस ली। गीता का पन्ना बंद करते हुए बोले, महाभारत कभी खत्म नहीं होती, बस समय और मंच बदल जाता है, किरदार वही रहते है।

                   * लेखिका दीप्ती डांगे मुंबई 

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