* लेखिका - सुनीता कुमारी बिहार
दिल्ली की सर्द सुबह थी। सूरज की हल्की किरणें शहर की ऊँची इमारतों के शीशों पर झिलमिला रही थीं। ट्रैफिक का शोर, हॉर्न की आवाज़ें और भीड़ में खोए हुए चेहरे—सब कुछ हमेशा की तरह तेज़ और अनजान।
इसी भीड़ में चल रही थी रिया मेहरा, 28 साल की, एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर।
चेहरे पर आत्मविश्वास था, पर आँखों में हल्की थकान—जैसे हर दिन खुद से कोई अनकहा वादा निभाना हो।
घर लौटते वक्त वह अक्सर मोबाइल में खो जाती थी—कभी सोशल मीडिया, कभी ईमेल, तो कभी डेटिंग ऐप पर कोई नया “मैच”।
शायद अब रिश्ते “ऑनलाइन” ही मिलते थे—जहाँ प्रोफाइल तस्वीर से पहले “बायो” पढ़ा जाता है, और भावनाएँ इमोजी में देखे जाते है।
एक दिन उसी ऐप पर उसे मिला आरव मल्होत्रा।
आईटी इंजीनियर, पर दिल से कवि। प्रोफाइल में लिखा था –
“कोड लिखता हूँ, पर जिंदगी को समझने की कोशिश भी करता हूँ।”
रिया को यह लाइन पसंद आई। उसने चैट शुरू की।
पहले दिन हल्की बातचीत, फिर मीम्स, फिर कविताएँ, फिर देर रात तक बातें।
धीरे-धीरे दोनों के बीच एक डिजिटल जुड़ाव बनने लगा।
आरव की बातें सच्ची लगती थीं, जैसे स्क्रीन के पार कोई असली इंसान साँस ले रहा हो।
कुछ हफ्तों बाद उन्होंने मिलने का निश्चय किया।
कॉफी कैफ़े में, एक सर्द दोपहर—
रिया सफेद कोट में, और आरव नीली जैकेट में।
पहली मुलाकात में ही दोनों को लगा,
"कुछ तो है इस कनेक्शन में, जो शब्दों से परे है।"
मिलना-जुलना बढ़ा।
आरव ने रिया को फिर से कविताओं में खो जाने की आदत दी,
और रिया ने आरव को अपने भीतर झाँकने की हिम्मत दी।
वो दोनों इंस्टाग्राम पर नहीं, दिल के किसी पुराने कोने में "फॉलो" कर रहे थे।
पर वक्त के साथ-साथ, आधुनिक दुनिया की हकीकतें भी सामने आने लगीं—
रिया का काम का प्रेशर, देर रात कॉल्स, मीटिंग्स।
आरव का फ्रीलांस काम, अनिश्चित आमदनी।
रिया स्थिरता चाहती थी, आरव स्वतंत्रता।
दोनों प्यार करते थे, पर ज़िंदगी के “सिस्टम अपडेट” अलग थे।
एक रात व्हाट्सएप पर झगड़ा हुआ—
बस एक “लास्ट सीन” की वजह से।
रिया ने कहा –
“तुम ऑनलाइन थे, लेकिन रिप्लाई नहीं किया। मतलब तुम बदल गए हो।”
आरव बोला – “प्यार रिप्लाई से नहीं मापा जाता, रिया।”
दोनों चुप रहे। फिर इमोजी वाले दिल भी गायब हो गए।
कॉल्स कम हुईं, बातें अधूरी।
डिजिटल रिश्ता धीरे-धीरे “ऑफलाइन” हो गया।
समय बीतता गया
छह महीने बाद, रिया का प्रमोशन हुआ।
वह खुश थी, पर भीतर कुछ खाली।
कभी-कभी कॉफी पीते हुए अब भी चैट हिस्ट्री खोल लेती—
जहाँ “हाय” से शुरू होकर “टेक केयर” पर खत्म हुई थी एक कहानी।
एक दिन उसे अचानक एक मेल मिला—
“From: Aarav Malhotra”
विषय: “नई कविता — डिजिटल दौर का रिश्ता”
कविता में लिखा था—
“तुम स्क्रीन की रौशनी थीं,
मैं शब्दों की स्याही।
पर जब दोनों मिले,
वक़्त की बैटरी खत्म हो गई।”
रिया की आँखें नम हो गईं।वो मुस्कुराई,
और पहली बार समझी —तकनीक कितनी भी आगे बढ़ जाए,रिश्तों की असल धड़कन अब भी दिल में ही बसती है।
रिया ने जवाब दिया —
“तुम्हारी कविता में अब भी मेरा अक्स है।”
आरव ने रिप्लाई किया —
“और तुम्हारे हर शब्द में मेरी खामोशी।”
दोनों ने मुलाकात तय की —पर इस बार कॉफी कैफ़े नहीं,पुराने पार्क की बेंच पर,जहाँ नेटवर्क कमजोर था,पर दिल का “कनेक्शन” मजबूत।
कहानी का सार:
आज का जमाना डिजिटल है,
पर इंसान अब भी भावनाओं का प्राणी है।
मोबाइल रिश्ते जोड़ सकते हैं, पर निभा नहीं सकते —वो काम अब भी दिल को ही करना पड़ता है।
