सत्ता के खेल में कुर्सियों की छीना-झपटी और राष्ट्रीयता कमजोर करती है...

* लेखक : चंद्रकांत सी. पूजारी,गुजरात 

राजनीति का मूल उद्देश्य राष्ट्र की सेवा, जनकल्याण, और देश के समग्र विकास की दिशा में कार्य करना है। किंतु जब राजनीति सेवा का मार्ग छोडकर सत्ता का साधन बन जाती है, तब कुर्सियों की छीना-झपटी का खेल शुरू हो जाता है। इस खेल में न विचारधारा की कोई अहमियत रहती है, न ही राष्ट्रहित की चिंता; केवल सत्ता प्राप्त करने और उसे बनाए रखने की लालसा सर्वोपरि हो जाती है। इस सत्ता-संघर्ष में नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बौछार करते है, दल-बदल करते है, और गठबंधन बनाते-तोडते हैं। ऐसी राजनीतिक अस्थिरता का सीधा प्रभाव जनता और राष्ट्रीयता पर पडता है। जब नेता अपने निजी स्वार्थ को राष्ट्रहित से ऊपर रखते है, तो राष्ट्रीयता की भावना धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है, और जनता के मन में राजनीति के प्रति अविश्वास बढता है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर पड़ने लगती है। राष्ट्र की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सत्ता के पद को सेवा का माध्यम समझा जाए, न कि स्वार्थ की सीढी। जब तक राजनीति में निष्ठा, पारदर्शिता, और आदर्शों का वर्चस्व नहीं होगा, तब तक यह कुर्सियों की दौड देश को भीतर से खोखला करती रहेगी।


उदाहरण के लिए, 2019 में कर्नाटक में देखा गया कि सत्तारूढ गठबंधन सरकार को अस्थिर करने के लिए कई विधायकों ने दल-बदल किया। इस घटना में निजी लाभ और सत्ता की लालसा ने जनादेश का अपमान किया, जिससे जनता के बीच अविश्वास और निराशा बढ़ी। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उपेक्षित रह गए, और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने की बजाय, इस तरह की राजनीति ने सामाजिक विभाजन को बढ़ावा दिया। आज आवश्यकता है ऐसी राजनीति की जो विचारों पर आधारित हो, व्यक्ति-पूजा पर नहीं; जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे, न कि सत्ता को। सत्ता का खेल यदि देशहित की दिशा में खेला जाए, तो वह विकास का सशक्त माध्यम बन सकता है। किंतु यदि यह केवल कुर्सी की छीना-झपटी तक सीमित रह जाए, तो यह राष्ट्रीयता की आत्मा को कमजोर कर देता है। 


राष्ट्रीयता का अर्थ केवल झंडा लहराना या देशभक्ति के नारे लगाना नहीं है, बल्कि वह भावना है जो हमें अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के हित में सोचने की प्रेरणा देती है। जब नेता और दल इस भावना को भुला देते हैं, तो राष्ट्र की एकता और अखंडता को गहरा आघात पहुँचता है। इसलिए, राजनीति में नैतिकता, पारदर्शिता, और जनसेवा की भावना का समावेश आवश्यक है, ताकि राष्ट्रीयता की नींव सुदृढ़ हो और देश सच्चे अर्थों में प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके।

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