* लेखक चंद्रकांत सी पूजारी, गुजरात
दांडिया और गरबा दोनों ही नवरात्रि के पर्व से जुड़े हुए पारंपरिक नृत्य है। ये खासकर गुजरात और राजस्थान में बहुत लोकप्रिय है, लेकिन आजकल पूरे भारत और विदेशों तक में भी मनाए जाते है। गरबा का अर्थ है गरभ यानी "गर्भ" या "जीवन का स्रोत"। इसमें मिट्टी का गरबा (मटकी/दीया) रखा जाता है, जिसके अंदर दीपक जलता है। यह मां शक्ति और सृजन शक्ति (नारी शक्ति) का प्रतीक है।
गरबा नृत्य करते समय लोग गोल घेरे में नाचते है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसके केंद्र में शक्ति (मां दुर्गा) विराजमान मानी जाती है। यह नृत्य भक्ति, आनंद और शक्ति की आराधना के लिए किया जाता है। दांडिया को "दांडिया-रास" भी कहा जाता है। इसमें लकड़ी की दो छड़ियाँ (दांडिया) मां दुर्गा की तलवार का प्रतीक मानी जाती हैं। यह नृत्य देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध की स्मृति में किया जाता है। नृत्य करते समय जब दांडिया आपस में टकराते है तो यह अच्छाई और बुराई के युद्ध का प्रतीक बनता है, और अंत में सत्य और शक्ति की विजय का संदेश देता है।
गरबा = जीवन, सृजन और देवी की शक्ति का प्रतीक।
दांडिया = देवी दुर्गा और असुर के युद्ध की याद और विजय का प्रतीक।
इस तरह नवरात्रि में गरबा और दांडिया, भक्ति, आनंद और शक्ति की उपासना के रूप में मनाए जाते है। लेकिन आजकल गरबा और दांडिया में भक्तिभाव कम और मनोरंजक का भाव उत्पन्न हो गया है, आजकल लोग मौज मनोरंजक को ज्यादा महत्व देने लगे है । इतना ही नही भडकाऊ फैशन कही कही अश्लीलता को भी प्रदर्शित कर रहे है। दांडिया और गरबा जैसे त्योहार मूल रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक होते है, जिनका उद्देश्य देवी की आराधना, सामूहिक आनंद और सामाजिक मेलजोल होता है। लेकिन आजकल कई जगहों पर इन आयोजनों में अश्लीलता या भड़काऊपन देखने को मिलता है।
इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हो सकते है..
व्यवसायीकरण - पहले ये आयोजन समाज और मंदिरों के स्तर पर होते थे, लेकिन अब बडे आयोजक और इवेंट मैनेजमेंट कंपनियाँ इनका संचालन करती है। ज़्यादा भीड़ खींचने और मुनाफा कमाने के लिए वे डीजे, ग्लैमर और भड़काऊ माहौल पर बना देते है।
फिल्मी और पाश्चात्य प्रभाव - परंपरागत गरबा के गीतों की जगह अब फिल्मी आइटम सॉन्ग और डीजे रिमिक्स बजने लगे है। ऐसे गानों पर लोग डांस करते है तो उसका स्वरूप धार्मिक से हटकर मनोरंजन और कभी-कभी अश्लीलता तक पहुँच जाता है।
युवा पीढ़ी की भागीदारी - नई पीढ़ी इसे पूजा की जगह “पार्टी” की तरह देखने लगी है। फैशनेबल कपड़े, आधुनिक डांस मूव्स और दिखावा कभी-कभी मर्यादा से बाहर हो जाते है।
सोशल मीडिया का असर -वायरल वीडियो बनाने की होड़ में लोग आकर्षक और चौंकाने वाले डांस मूव्स करते है, जिससे गरबा का मूल भाव बिगड़ता है।
संस्कार और मर्यादा में कमी - पहले परिवार और बुज़ुर्ग साथ में होते थे, जिससे अनुशासन बना रहता था। अब बड़े पैमाने पर भीड़भाड़ में नियंत्रण और निगरानी कम हो गई है।
दांडिया और गरबा पारंपरिक नवरात्रि पर्व के नृत्य है इसे अपने मुल रुप में रहने देने के लिए हमें प्रयास करने होगे।इन आयोजन में सुधार के लिए आयोजन समितियों को नियम बनाने चाहिए कि कौन से गीत और नृत्य शैली मान्य होना चाहिए। पारंपरिक वेशभूषा और गीतों को बढ़ावा दिया जाएं। अश्लीलता पर नजर रखने के लिए स्वयंसेवक / प्रबंधन की टीम हो। युवाओं को समझाया जाए कि यह सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि संस्कृति और आस्था का पर्व है।