हजरत जर जरी जर बख्श के दीदार को खुलताबाद में उमडते जायरीन

* 14 सितंबर तक चलेगा उर्स मेला, ईद ए मिलाद, पैहरन मुबारक व सिलसिला-ए-अमानत का आयोजन

खुलताबाद / संवाददाता :- छत्रपति संभाजीनगर जिले का खुलताबाद शहर धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व मुख्य रूप से सूफी संतों से जुडा है। इनमें सबसे प्रमुख नाम है हजरत शेख ख्वाजा जर तरी जर बख्श, जिन्हें शाह मुंतजबुद्दीन के नाम से भी जाना जाता है। जर जरी जर बख्श को 'कुतुब-ए-इरशाद' माना गया है, यानी अपने समय के पांच आध्यात्मिक कुतुषों में सबसे ऊंचे स्थान पर। सूफी संत जर जरी जर बख्श और बुरहानुद्दीन गरीब औलिया के कारण यह नगर चिश्ती सुफीवाद का केंद्र बन गया। 14 वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली के महान सूफी हजरत निजामुद्दीन औलिया ने उन्हें 700 शिष्यों के साथ दक्कन भेजा। वह औरंगाबाद पहुंचे और बाद में खुलताबाद में आकर बस गए। हजरत जर जरी जर बख्श उर्स बडे पैमाने में मनाया जाता है। इस दौरान दरगाह पर हजारों श्रद्धालु पहुंचते है। उर्स के साथ लगने वाले बाजारों में विभित्र वस्तुएं विक्री के लिए उपलब्ध रहती है।

* लाखों जायरीनों को खींच लाती सूफी संत की याद :- हर वर्ष यहां होने वाले खुलताबाद उर्स में देशभर से लाखों श्रद्धालु आते है। उर्स और संदल के अवसर पर ढाई लाख से अधिक लोग यहा जुटते है, जबकि ईद-ए-मिलाद के दौरान यह संख्या दोगुनी हो जाती है। इस बार उर्स 29 अगस्त से शुरू होकर 14 सितम्बर तक चल रहा है। पूरे एक महीने तक यहां मेले का आयोजन होता है। शेख अबु मोहम्मद बताते है कि हुजूर ए पाक पैगंबर मुहम्मद सल्लालाहु अलैही वसल्लम का पैहरन मुबारक भी यहां अमानत के तौर पर मौजूद है। यह अमानत सिलसिलेवार तौर पर हजरत हसन बसरी, ख्वाजा उस्मान हारून हारूनी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, कुतुबुदीन बख्तियार काकी, बाबा फरीद गंजेशकर, निजामुद्दीन औलिया और फिर सन 710 हिजरी में शेख बुरहानुद्दीन गरीब औलिया रहमतुल्लाह अलैह तक पहुंची। इसके साथ ही पैगंबर का मोह ए मुबारक भी यहां पहुंचा।

* परंपरागत तरीके से निकाला जर जरी जर बख्श का संदल :- खुलताबाद सुफी संत हजरत ख्वाजा शेख मुन्तजबोद्दिन जर जरी जर बक्क्ष के 739 वे वार्षिक उर्स का संदल पूरे परंपरागत तरीके से उर्स व्यवस्था समिति के मार्गदर्शन में दरगाह हजरत बुऱ्हानोद्दीन गरीब औलिया की दरगाह से रविवार शाम चार बजे फातेहा के बाद निकला। संदल जुलूस में बैंड बाजा व ढोल ताशे की आवाज से पूरा परिसर गूंज उठा। संदल जुलूस में उर्स व्यवस्था समिति सचिव समीर शेख, दरगाह अध्यक्ष एजाज अहमद, उपाध्यक्ष इमरान जागीरदार, दरगाह सचिव मतीन अहमद, सदस्य मुशीरोद्दीन, कामरानोद्दीन, हबीबोद्दीन टेलर, मुहम्मद अबरार के अलावा सैकड़ों अकीदतमंद उपस्थित थे। इस दौरान हर वर्ष की तरह विभिन्न राज्यों से आने वाले फकीरों ने एक से बढ़कर एक करतब दिखाकर लोगों को आकर्षित किया।

* हर वर्ष आते लाखों जायरीन :- हर साल 12 रबीउल अव्वल को इस पैहरान मुबारक और मोह ए मुबारक की जियारत के लिए लाखों जायरीन आते है। इसके अलावा इसी दिन हजरत शेख ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया का दस्तार ए मुबारक और अमामा मुबारक, 21 वे राजा बुऱ्हानुद्दीन गरीब का खरका मुबारक और 22 वे ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन दाऊद हुसैन शिराजी का लिखित कुरान शरीफ, औरंगजेब आलमगीर द्वारा लिखित कुरआन-ए-पाक को मी जियारत के लिए रखा जाता है।

* ऐसी है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :- खुलताबाद का इतिहास 1 4वीं शताब्दी से जुडा है। जब दिल्ली सल्तनत के शासक मोहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली की आबादी को दौलताबाद में बसाया। इसी दौरान अनेक खुसी संत रौजा (खुलताबाद का पुराना नाम) में आकर बस गए। मुगल सम्राट अकबर से लेकर शाहजहां और औरंगजेब तक ने खुलताबाद को संरक्षण दिया। औरंगजेब ने स्वयं वहीं दफन होना चुना। इसी कारण इस स्थान को उनके मरणोपरांत उपनाम खुल्द मकान मिला और शहर का नाम खुलताबाद पडा। बाद में निजामों ने भी इसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल के रूप में संरक्षित किया।

* दरगाह और अवशेष :- हजरत ख्वाजा मुन्तजबोद्दिन जर जरी जर बक्ष का मकबरा शहर के उत्तरी द्वार और मलिक अंबर की कब्र के बीच स्थित है। यहां कई आभूषण और अवशेष रखे गए है। इनमें सबसे उल्लेखनीय है चार फीट ऊंचे स्टॉल के चबूतरे पर स्थापित गोलाकार स्टील का दर्पण। कहा जाता है कि गोलकुंडा के शासक राजा अबुल हसन ताना शाह ने इसे भेंट किया था। यहां की ऊँचाई 2,732 फीट होने के कारण यहां का मौसम सुहावना रहता है। यह प्रसिद्ध एलोरा गुक्षाओं से मात्र 4 औल की दूरी पर स्थित है।

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